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Karak ki paribhasha || कारक प्रकरण - विभक्ति, भेद, चिह्न एवं उदाहरण - संस्कृत , हिंदी


कारक की परिभाषा

karak ki paribhasha - व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम शब्द की वह अवस्था जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ संबंध प्रकट होता है उसे कारक कहते हैं। 
अथवा
किसी न किसी रूप में क्रिया के सम्पादक तत्त्व को ‘कारक' कहा जाता है। यही कारण है कि प्रत्येक कारक का क्रिया के साथ प्रत्यक्ष संबंध अवश्य रहता है।
अथवा 
संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया से सम्बन्ध जिस रूप से जाना जाता है, उसे कारक कहते हैं। कारक यह इंगित करता है कि वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का काम क्या है। 
"करोति निर्वर्तयति क्रियाम् इति कारकम् ।"
"क्रियान्वयित्वम् कारकम् ।।"

    नमस्कार दोस्तों 🙏 , स्वागत हैं आपका हमारी वेबसाइट "ज्ञान और शिक्षा" में |

    कारक के निम्न उदाहरण

    1. रामः पठति। राम पढ़ता है।
    2. रामः पुस्तकं पठति। राम किताब पढ़ता है।
    3. रामः मनसा पुस्तकं पठति। राम मन से किताब पढ़ता है।
    4. रामः मनसा ज्ञानाय पुस्तकं पठति। राम मन से ज्ञान के लिए पुस्तक पढ़ता |
    5. रामः मनसा ज्ञानाय आचार्यात् पुस्तकं पठति। राम मन से ज्ञान के लिए आचार्य से पुस्तक पढ़ता है।
    6. रामः विद्यालये आचार्यात् ज्ञानाय मनसा पुस्तकं पठति। राम विद्यालय में आचार्य से ज्ञान के लिए मन से किताब पढ़ता है।


    तो दोस्तों उपरोक्त दिए गये उदाहरण को तो अपने देख ही लिया है आइये इससे हम क्या जाने ये भी जानते हैं  |
    जैसे कि हमने देखा ,ऊपर दिए उदाहरण में  पठति क्रिया हैं | तो इस क्रिया के क्रियापद से कारक  सम्बंधित प्रश्न करते हैं |

    क्रियापद से कारक  सम्बंधित प्रश्न :-

    संख्या प्रश्न उत्तर संस्कृत
        1. कौन पढ़ता है ? राम रामः
        2. क्या पढ़ता है ? किताब पुस्तकम्
        3. कैसे पढ़ता है ? मन से मनसा
        4. किसलिए पढ़ता है ? ज्ञान के लिए ज्ञानाय
        5. किससे पढ़ता है ? आचार्य से आचार्यात्
        6. कहाँ पढ़ता है? विद्यालय में विद्यालये
    #अब बताइये आपने क्या समझा ? 
    क्या अपने ध्यान दिए कि रामः, पुस्तकं, मनसा, ज्ञानाय, आचार्यात् और विद्यालय का किसी-न-किसी रूप में क्रिया पठति' से संबंध है | अब सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों पर बात करेंगे | जोकि इस प्रकार हैं --


    संस्कृत में छ: ही कारक क्यों ? :-

    आइये अब इन वाक्यों को भी ध्यान से समझा जाये -
    1. रामः मित्रस्य गृहं गच्छति। राम मित्र के घर जाता है।
    2. हे रामः ! त्वं मित्रस्य गृहं गच्छसि । हे राम! तुम मित्र के घर जाते हो।
    इन दोनों वाक्यों में क्रियापद ‘गच्छति' एवं ‘गच्छसि’ हैं। हम इनमें भी जोड़कर प्रश्न पूछते हैं-
    संख्या प्रश्न उत्तर संस्कृत
        1. किसके घर ? मित्र के मित्रस्य
        2. कौन जाता है ? राम रामः
    #अब बताइये इस उदाहरण से आपने क्या समझा ? 
    कि ‘घर का संबंध ‘मित्र' से है न कि ‘गच्छति' से और संबोधन बालक से ही संबंधित है न कि 'गच्छसि से' । 

    इसका तात्पर्य  है कि 'संबंध' और 'संबोधन' क्रियापद से प्रत्यक्षतः संबंधित नहीं होते हैं। यही कारण है कि संस्कृत में छ: कारक ही होते हैं। 
     "कर्ता कर्म करणं च सम्प्रदानं तथैव च,
    अपादानाधिकरणे इत्याहुः कारकाणि षट्।"
    संबंध कारक और संबोधन कारक हिन्दी भाषा में हुआ करते हैं। संस्कृत में विभक्तियों के लिए संबंध को रखा गया है। संबोधन तो कर्ता का ही होता है। इस प्रकार कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण ये छह कारक और संबंध जोड़कर सात विभक्तियाँ होती हैं।

    विभक्ति की परिभाषा :-

    Vibhakti ki paribhasha - विभक्ति का शाब्दिक अर्थ है - ' विभक्त होने की क्रिया या भाव' या 'विभाग' या 'बाँट'। व्याकरण में शब्द (संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण) के आगे लगा हुआ वह प्रत्यय या चिह्न विभक्ति कहलाता है जिससे पता लगता है कि उस शब्द का क्रियापद से क्या संबंध है। विभक्तियाँ सात होती हैं।

    कारक/विभक्ति तालिका:-


    क्रम विभक्ति/कारक विवरण सूत्र
    1. कर्त्तरि प्रथमा कर्ता में प्रथमा विभक्ति स्वतंत्र कर्त्ता
    2. कर्मणि द्वितीया कर्म में द्वितीया विभक्ति कर्तुरीप्सिततम् कर्मः
    3. करणे तृतीया करण में तृतीय विभक्ति साधकतम् करणम्
    4. सम्प्रदाने चतुर्थी सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति कमर्णा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्
    5. अपादाने पंचमी अपादान में पंचमी विभक्ति ध्रुवमपायेऽपादानम्
    6. सम्बन्धे षष्ठी संबंध में षष्ठी विभक्ति और षष्ठीशेशे
    7. अधिकरणे सप्तमी अधिकरण में सप्तमी विभक्ति आधारोधिकरणम्


    हिन्दी की ये विभक्तियाँ जिन्हें परसर्ग कहा जाता है को याद कर लें ताकि आपको हिंदी से संस्कृत में अनुवाद करने में सुविधा हो।

    क्रम विभक्ति चिन्ह(परसर्ग ) सूत्र
    1. कर्त्ता कारक ने स्वतंत्र कर्त्ता
    2. कर्म कारक को कर्तुरीप्सिततम् कर्मः
    3. करण कारक से, द्वारा (साधन के लिए) साधकतम् करणम्
    4. सम्प्रदान कारक को, के लिए कमर्णा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्
    5. अपादान कारक से (जुदाई के लिए) ध्रुवमपायेऽपादानम्
    6. संबंध कारक का-के-की, ना-ने-नी, रा-रे-री षष्ठीशेशे
    7. अधिकरण कारक में, पर आधारोधिकरणम्

    karak prakaran

    कारक के भेद - विभक्तियाँ एवं उनके प्रयोग


    1. कर्त्ता कारक (प्रथमा विभक्ति) 
    2. कर्म कारक (द्वितीया विभक्ति)
    3. करण कारक (तृतीया विभक्ति)
    4. सम्प्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति)
    5. अपादान कारक (पंचमी विभक्ति)
    6. संबंध कारक (षष्ठी विभक्ति)
    7. अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)

        हिन्दी में कारक की परिभाषा:-

    हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करने के लिए हिन्दी के कारकों का संक्षिप्त विवरण जानना बहुत जरुरी  है।
    1. कर्ता कारक (0, ने) -
    जो क्रिया करता है, उसे ‘कर्ता कारक' कहते हैं। इसके चिह्न '0' और 'ने' हैं। शून्य से तात्पर्य है–'ने' चिह्न का अभाव । 
    जैसे-
    वह जाता है- सः गच्छति । ('0' चिहन)
    राम ने रावण को मारा- रामः रावणं हतवान् ('ने' चिह्न) ।

    2. कर्म कारक (0, को) -
    जिस पर कार्य का प्रभाव पड़े वह ‘कर्म कारक' कहलाता है। 
    जैसे- राम ने रावण को मारा। इस वाक्य में 'रावण' कर्म है। 

    3. करण कारक (से/द्वारा) -
    जिसके द्वारा कर्ता कार्य करता है अर्थात जिस साधन से काम किया जाये वह करण कारक कहलाता है। 
    जैसे- रामः वाणेन रावणं हतः । राम ने बाण से रावण को मारा। 
    इस वाक्य में ‘बाण' करण कारक है।

    4. सम्प्रदान कारक (को/ के लिए) -
    जिसके लिए काम किया जाये वह सम्प्रदान कारक कहलाता है। 
    जैसे- वह मिठाई के लिए बाजार गया। सः मोदकाय हट्टंगतः । 
    इस वाक्य में ‘मिठाई' सम्प्रदान कारक हुआ।

    5. अपादान कारक (से) -
    जिससे अलगाव का बोध हो अथवा जिससे अलग होने का बोध है। वह अपादान कारक कहलाता है |
    जैसे- वृक्ष से पत्ते गिरते हैं। वृक्षात् पत्राणि पतन्ति । 
    इस वाक्य में ‘वृक्ष' अपादान का उदाहरण है।

    6. सम्बन्ध कारक (का-के-की-ना-ने-नी-रा-रे-री) -
    जिसका अन्य पदों से संबंध हो या जिससे कर्ता का संबंध है। 
    जैसे- राजा का पुत्र आया। नृपस्य पुत्रः आगतः .| 
    इस वाक्य में 'राजा' संबंध कारक हुआ।

    7. अधिकरण कारक (में/पर) -
     जिस पर कार्य का आधार हो अथवा जहाँ या जिस पर क्रिया की जाय वह अधिकरण कारक कहलाता है। 
    जैसे- पेड़ पर पक्षी रहते हैं। वृक्षे खग: निवसन्ति । 
    इस वाक्य में ‘वृक्ष' अधिकरण कारक हुआ।

    8. संबोधन कारक प्रायः कर्ता ही होता है। -
    जिस शब्द से किसी को पुकारा या बुलाया जाए उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। 
    जैसे – हे राम ! यह कैसे हो गया। 
    इस वाक्य में ‘हे राम!’ सम्बोधन कारक है, क्योंकि यह सम्बोधन है।

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