Adhikaran Karak - अधिकरण कारक "सप्तमी विभक्ति" की परिभाषा, चिन्ह, उदाहरण - संस्कृत, हिंदी
adhikaran karak |
अधिकरण कारक की परिभाषा
परिभाषा - अधिकरण कारक में अधिकरण का अर्थ होता है- आधार या आश्रय अर्थात जिस शब्द से क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं।अथवा -
शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति-चिह्न में , पे , पर हैं।
अधिकरण कारक की व्याख्या
अधिकरण कारक में " भीतर, अंदर, ऊपर, बीच " आदि शब्दों का प्रयोग इस कारक में किया जाता है। कहीं-कहीं पर विभक्तियों का लोप होता है तो उनकी जगह पर किनारे, आसरे, यहाँ, वहाँ, समय आदि पदों का प्रयोग किया जाता है। कभी-कभी " में " के अर्थ में " पर "और "पर" के अर्थ में " में " लगा दिया जाता है।उदाहरण -
(1) पानी में मछली रहती है। - इस वाक्य में ‘पानी में’ अधिकरण कारक है, क्योंकि यह मछली के आधार पानी का बोध करा रहा है।
(2) भँवरा फूलों पर मँडरा रहा है। - इस वाक्य में ‘फूलों पर’ अधिकरण कारक है, क्योकिं यहाँ भी भंवरे के मंडरने का आधार फूल हैं |
(3) कमरे में टी.वी. रखा है। - इस वाक्य में ‘कमरे में’ अधिकरण कारक है।
अधिकरण कारक से सम्बंधित सूत्र
सप्तमी विभक्ति - संस्कृत
व्याख्या- अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है।
जैसे - छात्राः विद्यालये पठन्ति । छात्रः विद्यालय में पढ़ते हैं।
NOTE- कुशल तथा निपुण शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती हैं |
जैसे - स: भौतिकशास्त्रे कुशल: अस्ति | वह भौतिक शास्त्र में कुशल है |
2. सूत्र- [ आधारोऽधिकरणम् ]
व्याख्या- कर्ता या कर्म के द्वारा क्रिया का आधार अधिकरण कारक होता है। यानी आधार को ही अधिकरण कहते हैं। यह तीन प्रकार का होता है।
(I) औपश्लेषिक आधार (II) वैषयिक आधार (III) अभिव्यापक आधार
जैसे -
जैसे -
- कटे आस्ते मुनिः ? मुनि चटाई पर बैठते हैं। (स्थानवाची)
- पात्रे वर्तते जलम् । पात्र में जल है। (भीतरी आधार)
- मोक्षे इच्छा अस्ति लोकस्य । लोग की इच्छा मोक्ष में है। (विषयवाची)
3. सूत्र- [ साध्वसाधु प्रयोगे च ]
व्याख्या- साधु और असाधु शब्दों के योग में भी सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे-
कृष्ण: मातुले असाधु | अर्थात कृष्ण: मामा के विषय में असाधु हैं |
कृष्णः मातरि: साधु | अर्थात कृष्णः माँ के सन्दर्भ में साधु (सज्जन) हैं |
4. सूत्र- [ यस्य च भावेन भावलक्षणम् / भावे सप्तमी ]
व्याख्या- जिस क्रिया के काल से दूसरी क्रिया के काल का ज्ञान हो, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे-
- सूर्ये अस्तं गते सः गतः । सूर्य के अस्त हो जाने पर वह गया।
- गोषु दुयमानासु गतः । वह गायों के दूहे जाने के समय गया ।
- रामे वनं गते मृतो दशरथः । राम के वन जाने पर दशरथ मर गए।
5. सूत्र- [ अवच्छेदे सप्तमी ]
व्याख्या- शरीर के किसी अंग में यदि सप्तमी विभक्ति लगी रहती है। तो उसे ‘अवच्छेदे सप्तमी' कहते हैं।
जैसे- करे गृहीत्वा कथितः । कर में लेकर कहा।
6. सूत्र- [ यतश्च निर्धारणम् ]
व्याख्या- बहुतों में किसी को श्रेष्ठतम् बताने में जिसमें श्रेष्ठ बताया जाय उसमें षष्ठी और सप्तमी दोनों विभक्तियाँ लगाई जाती हैं।
जैसे -
जैसे -
- कवीनां/कविषु कालिदासः श्रेष्ठाः। कवियों में कालिदास श्रेष्ठ ।
- नदीषु गङ्गा पवित्रमा । गंगा सबसे पवित्र नदी है ।
- नारीषु सीता पटुतमा आसीत् । नारियों में सीता सबसे उत्तम ।
7. सूत्र- [ निमित्तात् कर्मयोग ]
व्याख्या- जिस निमित्त के लिए कर्मकारक से युक्त क्रिया की जाती है, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे-
- चर्मणि द्वीपिनं हन्ति । चमड़े के लिए चीते को मारता है।
- दन्तयोः हन्ति कुंजरम् । दाँतों के लिए हाथी को मारता है।
8. सूत्र- [ स्नेह, आदर, अनुराग, कुशल, निपुण आदि के अर्थ में ]
व्याख्या- स्नेह, आदर, अनुराग, कुशल, निपुण आदि के अर्थ में सप्तमी विभक्ति होती है ।
जैसे -
- माता बालके स्निह्यति ।
- रामः पितरि आदरम् करोति ।
- रमा वीणायां प्रवीणः अस्ति ।
- सः वार्तालापे कुशलः अस्ति ।
अधिकरण कारक के उदहारण - हिंदी
- राम घर में है।
- घड़ी मेज पर है।
- पानी में मछली रहती है।
- कुर्सी आँगन के बीच बिछा दो।
- घर में दीपक जल रहा है।
- मुझमें शक्ति बहुत कम है।
- वह सुबह गंगा किनारे जाता है।
- कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ था।
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