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Karm Karak - कर्म कारक "द्वितीय विभक्ति" की परिभाषा, चिन्ह, उदाहरण|

karm karak

कर्म कारक की परिभाषा- 

karm ki Paribhasha- वह वस्तु या व्यक्ति जिस पर वाक्य में की गयी क्रिया का प्रभाव पड़ता है वह कर्म कारक कहलाता है। कर्म कारक का विभक्ति चिन्ह ‘को’ होता है। अथवा - वाक्य में हो रहे कार्य का फल अर्थात प्रभाव जिसपर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं।

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    कर्म कारक (द्वितीया विभक्ति) के सूत्र  

    विषय - संस्कृत

    1. सूत्र - [ कर्तुरीप्सिततमं कर्म ]
    कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा जिसे विशेष रूप से प्राप्त करना चाहता है उसे कर्म कारक कहते हैं।
    अर्थात उसकी कर्म संज्ञा होगी | 
    जैसे- रामः लेखान्याम् पत्रं लिखति | 
    स्पष्ठीकरण - यहाँ राम रुपी कर्ता अपनी लेखन रुपी क्रिया से सबसे ज्यादा पत्र लिखना चाह रहा है अर्थात पत्र में द्वितीय विभक्ति होगी |

    2. सूत्र - [ कर्मणि द्वितीया ]
    कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। 
    जैसे- कृष्ण: गृहं गच्छति | कृष्ण घर जाता है |
    अंशुल फलं खादति । अंशुल फल खाती है ।

    3. सूत्र - [ अकथिक च ]
    इसके अंतर्गत 16 धातुएं आती हैं जिन्हें द्विकर्मक धातु कहा जाता है। इन 16 धातुओं और इनके समानवाची धातुओं के योग में द्वितीय विभक्ति अर्थात कर्मकारक होता है ये धातुएं इस प्रकार हैं -
    जैसे- 

    दुह्(दुहना) याच(मांगना)
    पच्(पकाना) दण्ड(दण्ड देना)
    रुध(रोकना) पृच्छ(पूछना)
    चि(चुनना) ब्रू(कहना)
    शास्(शासन करना) जि(जीतना)
    मथू(मथना) मुष्(चुराना)
    नी(ले जाना ) हृ(हरण करना)
    कृष्(खीचना) वह(ले जाना)

    4. सूत्र - [ अधिशीड्स्थासां कर्म ]
    (शी, स्था और आस् ) धातुओं से पूर्व अगर ‘अधि’ उपसर्ग के आया है तो द्वितीया विभक्ति होती है। 
    जैसे- नृपः सिंहासनं अधितिष्ठाति |
    धीरज: शय्याम् अधिशेते। धीरज शय्या पर सोता है।


    5. सूत्र - [ उपान्चध्यावसः ]
    ( उप, अनु, अधि और आड' ) उपसर्ग के बाद यदि वसु धातु आया। तो सप्तमी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति होती है। 
    जैसे- राजा नगरं उपवसति |
    हरि बैकुण्ठम् अनुवसति । अधिवसति/आवसति/विष्णु बैकुण्ठ में रहते हैं।

    6. सूत्र - [ अन्तराअन्तरेण युक्ते ]
    अन्तरा और अन्तरेण इन अवयवों के योग में द्वितीय विभक्ति होती हैं। 
    जैसे- संस्कृतं अन्तरेण किमपि न जानामि |


    7. सूत्र - [ अभितः परितः, समया निकषा हा प्रतियोगिअपी द्वितीया ]
    अभितः (दोनों ओर), परितः (चारों ओर), समया (समीप) और निकषा (निकट) , हा(शोक प्रकट करने के लिए ) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। 
    जैसे—
    ग्रामं परितः वृक्षाः सन्ति । गाँव के चारों ओर वृक्ष हैं।
    विद्यालयम् निकषा पर्वताः सन्ति । विद्यालय के पास पहाड़ हैं।

    8. सूत्र - [ कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे द्वितीया ]
    यदि किसी काल में कोई क्रिया लगातार हो तो ऐसे कलवाची पद में द्वितीया विभक्ति होती है |
    और 
    इसी तरह यदि मार्ग की दूरी में कोई वास्तु लगातार हो तो उसे अध्य वाचक मर्ग्वाचक शब्द में द्वितीय विभक्ति होती है 
    जैसे -
    क्रोशं कुटिला नदी । एक कोस तक नदी टेढ़ी है।
    मासम् व्याकरणम् अपठत् । एक मास में व्याकरण पढ़ा।

    कर्म कारक के (हिन्दी)उदाहरण

    • मोहन' ने मीरा क बुलाया।
    • रामू ने गाय को पानी पिलाया।
    • माँ ने बेटी को खाना खिलाया।
    • मेरे भाई ने कुत्तों को भगाया।

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