Karan Karak - करण कारक "तृतीय विभक्ति" की परिभाषा, चिन्ह, उदाहरण और व्याख्या |
करण कारक की परिभाषा
Karan Karak Ki Paribhasha- जिसकी सहायता से या जिन संज्ञा आदि, शब्दों से कोई कार्य संपन्न किया जाए, उसे करण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति-चिह्न ‘से’ या के ‘द्वारा’ है।अथवा - वह साधन जिससे क्रिया होती है, वह करण कहलाता है। अर्थात, जिसकी सहायता से किसी काम को अंजाम दिया जाता वह करण कारक कहलाता है।
जैसे – वह कलम से लिखता है।
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करण कारक के उदाहरण -
अर्जुन ने जयद्रथ को बाण से मारा। - इस वाक्य में कर्ता अर्जुन ने मारने का कार्य ‘बाण’ से किया। अतः ‘बाण से’ करण कारक है।बालक गेंद से खेल रहे है। - इस वाक्य में कर्ता बालक खेलने का कार्य ‘गेंद से’ कर रहे हैं। अतः ‘गेंद से’ करण कारक है।
करण कारक(तृतीया विभक्ति) के सूत्र
विषय - संस्कृत
1. सूत्र - [ करणे तृतीया ]
करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे -रामः वाणेन रावण हतवान् ।
राम ने बाण से रावण को मारा।
2. सूत्र - [ सहयुक्ते प्रधाने तृतीया ]
जो शब्द किसी के साथ जाने के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, उनमें तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे- सीता रामेण सह वनं अगच्छत्। - सीता राम के साथ वन में जाती हैं |
श्यामः बालकेन सार्धम् क्रीडति । - श्याम बालकों के साथ खेलता है |3. सूत्र - [ साधकतमम् करणम् ]
किसी वस्तु द्वारा कोई काम किया जाये | अथवा कोई क्रिया सम्पादन करने में जो साधन का काम करता है वह करण कारक होता है।
किसी वस्तु द्वारा कोई काम किया जाये | अथवा कोई क्रिया सम्पादन करने में जो साधन का काम करता है वह करण कारक होता है।
जैसे - सः कलमेन लिखति । वह कलम से लिखता है।
4. सूत्र - [ येनाङ्गविकारः ]
जब किसी व्यक्ति या जीव के किसी अंग में कोई विकार हो, उसमें तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे-
सः अक्ष्णा काणः अस्ति। वह आँख से काना है।
रमेशः पादेन खञ्जः अस्ति । रमेश पैर से लँगड़ा है।
सः कर्णन वधिरः अस्ति । वह कान से बहरा है।।
सः अक्ष्णा काणः अस्ति। वह आँख से काना है।
रमेशः पादेन खञ्जः अस्ति । रमेश पैर से लँगड़ा है।
सः कर्णन वधिरः अस्ति । वह कान से बहरा है।।
5. सूत्र - [ पृथग्विनानानाभिस्तृतीयाऽन्यतरस्याम् ]
पृथक्, बिना, नाना आदि शब्दों के योग में विकल्प से तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे- प्रवरेण बिना नावकोठी शून्या अस्ति ।
प्रवर के बिना नावकोठी सूनी है।
Note : प्रवरेण की जगह ‘प्रवरं और ‘प्रवरात्' भी होता है।
6. सूत्र - [ अनुक्ते कर्त्तरि तृतीया ]
कर्मवाच्य एवं भाववाच्य में कर्ता अनुक्त (अप्रधान) रहता है। इस कारण से उसमें तृतीया विभक्ति होती है। जैसे -
रामेण रावणः हतः। राम से रावण मारा गया।
विप्रेण वेदः पठयते । ब्राह्मण से वेद पढ़ा जाता है।
मया हस्यते । मुझसे हँसा जाता है।
रामेण रावणः हतः। राम से रावण मारा गया।
विप्रेण वेदः पठयते । ब्राह्मण से वेद पढ़ा जाता है।
मया हस्यते । मुझसे हँसा जाता है।
7. सूत्र - [ सहयुक्तेऽप्रधाने तृतीया ]
सह, साकम्, सार्धम्, समम् (साथ अर्थ में) आदि शब्दों के प्रयोग होने पर तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-
रामः जानक्यां सह गच्छति। राम जानकी के साथ गई।
छात्रेण समं गतः गुरुः । गुरु छात्र के साथ गया।
रामः जानक्यां सह गच्छति। राम जानकी के साथ गई।
छात्रेण समं गतः गुरुः । गुरु छात्र के साथ गया।
8. सूत्र - [ अपवर्गे तृतीया ]
किसी कार्य समाप्ति या फल प्राप्ति को 'अपवर्ग' कहा जाता है। इस अर्थ में कालवाची(जिससे समय का ज्ञान ) एवं मार्गवाची(जिससे दूरी या दिशा का ज्ञान हो) शब्दों में ततीया विभक्ति होती है।
जैसे-
मासेन व्याकरणम् अधीतम् । एकमाह में व्याकरण पढ़ लिया।
सः क्रोशेन कथाम् अकथयत् । उसने एक कोस जाते-जाते कहानी कही।
मासेन व्याकरणम् अधीतम् । एकमाह में व्याकरण पढ़ लिया।
सः क्रोशेन कथाम् अकथयत् । उसने एक कोस जाते-जाते कहानी कही।
9. सूत्र - [ प्रकृत्यादिभ्यश्च उपसंख्यानम् ]
किसी की प्रकृति, विशेषण आदि वाचक शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे -
सः प्रकृत्या दयालु: । वह प्रकृति से दयालु है।
महेश: वेगेन धावति । महेश: वेग से दौड़ता है।
सः प्रकृत्या दयालु: । वह प्रकृति से दयालु है।
महेश: वेगेन धावति । महेश: वेग से दौड़ता है।
10. सूत्र - [ तुल्यार्थे तुलोपमाम्यां तृतीया ]
जो शब्द किसी के साथ तुलना किये जाने के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, उनमें तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे- सीतायाः मुखं चंद्रेण तुल्यम् अस्ति ।
11. सूत्र - [ ऊनवारणप्रयोजनार्थेषु तृतीया ]
ऊनवाचक (हीन, रहित) जैस हम लोग संस्कृत गिनती (19, 29) लिखते समय ऊन का प्रयोग करते हैं उदाहरण - ऊनविंशति , इसके साथ ही वारणार्थक (अलम्, कृतम्, किम् आदि से निषेध किया जाय) और प्रयोजनार्थी शब्दों में योग में तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे-
सः धनेन हीनः अस्ति । वह धन से हीन है।
एकेन ऊनम् । एक कम।
सः धनेन हीनः अस्ति । वह धन से हीन है।
एकेन ऊनम् । एक कम।
12. सूत्र - [ हैती तृतीया पञ्चमी च ]
हेतु अर्थात् कारण के अर्थ में तृतीया और पञ्चमी दोनों विभक्तियाँ होती हैं।
जैसे -पुण्येन सुखं मिलति । पुण्य से सुख मिलता है।
13. सूत्र - [ इत्थंभूतलक्षणे वा उपलक्षणे तृतीया ]
जो शब्द किसी की पहचान के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, उनमें तृतीया विभक्ति होती है।
जैसे- सः जटाभिस्तापसः अस्ति। वह जटा से तपस्वी लगता है।
करण कारक के हिन्दी उदाहरण
- बच्चे खिलौनों से खेल रहे हैं।
- गीत को कलम से लिखा गया है।
- राम ने रावण को बाण से मारा।
- अमीश सारा ज्ञान पुस्तकों से लेता है।
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