Karta Karak - कर्ता कारक "प्रथम विभक्ति" की परिभाषा, चिन्ह, उदाहरण |
कर्त्ता कारक की परिभाषा
Karta karak ki bharibhasha - कर्त्ता के जिस रूप से कार्य के करने वाली क्रिया का बोध होता है उसे कर्त्ता कारक कहते है। इसके विभक्ति का चिह्न " ने " है। इस ने चिह्न का वर्तमानकाल और भविष्यकाल में प्रयोग नहीं होता है। जबकि इसका सकर्मक धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग होता है।नमस्कार दोस्तों 🙏 , स्वागत हैं आपका हमारी वेबसाइट "ज्ञान और शिक्षा" में |
कर्ता कारक के उदाहरण -
(1)राम ने रावण को मारा। (2) लड़का स्कूल जाती है।
(2) - वर्तमानकाल व भविष्यतकाल की सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है। जैसे - वह फल खाता है।, वह फल खाएगा।
1. सूत्र - [ स्वतंत्र कर्त्ता ]
5. सूत्र - [ उक्ते कर्त्तरि प्रथमा ]
6. सूत्र - [ अभिधेयमात्रे प्रथमा ]
8. सूत्र - [ प्रयोजक कर्त्तरि प्रथमा ]
व्याख्या (1) - पहले वाक्य में क्रिया का कर्ता राम है। इसमें " ने " कर्ता कारक का विभक्ति-चिह्न है। इस वाक्य में मारा भूतकाल की क्रिया है। " ने " का प्रयोग प्रायः भूतकाल में होता है।
व्याख्या (2) - दूसरे वाक्य में वर्तमानकाल की क्रिया का कर्ता लड़की है। इसमें " ने " विभक्ति चिन्ह का प्रयोग नहीं हुआ है।
कर्ता कारक के नोट Points -
(1) - भूतकाल में अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ने परसर्ग (विभक्ति चिह्न) नहीं लगता है।
जैसे-वह हँसा।
(2) - वर्तमानकाल व भविष्यतकाल की सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है। जैसे - वह फल खाता है।, वह फल खाएगा।
(3) - कभी-कभी कर्ता के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रयोग भी किया जाता है।
जैसे- बालिका को सो जाना चाहिए।,
सोहन से पुस्तक पढ़ी गई।,
अल्का से चला भी नहीं जाता।
कर्त्ता कारक(प्रथमा विभक्ति) के सूत्र
विषय - संस्कृत
क्रिया करने में जिसकी स्वतंत्रता मानी जाए वह कर्ता कारक होता है |
जैसे - मोहनः पठति |
वाक्य में कर्ता की स्थिति के अनुसार संस्कृत में वाक्य तीन कारक के होते है |
(1) कर्तृ वाच्य (2) कर्म वाच्य (3) भाव वाच्य
2. सूत्र - [ प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा ]
प्रातिपदिकार्थ मात्र तथा लिंग मात्र, परिमाण एवं वचन मात्र के आधिक्य में प्रथमा विभक्ति होती है।
प्रातिपदिकार्थ मात्र तथा लिंग मात्र, परिमाण एवं वचन मात्र के आधिक्य में प्रथमा विभक्ति होती है।
प्रातिपदिकार्थ का अर्थ - प्रातिपदिकार्थ से तात्पर्य है की जिनसे स्वार्थ , द्रव्य , लिंग, संख्या और कारक इन पांचो में, जिसका ज्ञान निश्चित रूप से हो उसे प्रातिपदिकार्थ कहते है |
जैसे - उच्चै:, लता, फलम् , रामः पठति, आदि।
लिङ्ग मात्र का आधिक्य का अर्थ - जिन शब्दों के लिंग निश्चित नहीं होते है | उन शब्दों के लिंग मात्र में प्रथम विभक्ति होती है|
जैसे - एकः, द्वौ: , बहवः |
3. सूत्र - [ सम्बोधने च प्रथमा ]
हिन्दी के संबोधन कारक में प्रथमा विभक्ति होती है।
जैसे - हे राम ! अत्र आगच्छ।
4. सूत्र - [ क्रिया सम्पादकः कर्त्ता ]
जो क्रिया का सम्पादन करे वह कर्त्ता कारक होता है।
जैसे - प्रवरः पठति।
इस वाक्य में पठति क्रिया का सम्पादन 'प्रवर' करता। है। इसलिए ‘प्रवर' कर्ता कारक में आया ।
5. सूत्र - [ उक्ते कर्त्तरि प्रथमा ]
कर्तृवाच्य में जहाँ कर्ता उक्त या कहा गया होता है | उसमे विभक्ति होती है |
जैसे - रामः गृहम गच्छति |
स्पष्ठीकरण - उक्त वाक्य में राम कर्तृ वाच्य कर्ता है जो कि उक्त है अर्थात जिसके बारे में कहा जा रहा है अर्थात राम में प्रथम विभक्ति होगी |
6. सूत्र - [ अभिधेयमात्रे प्रथमा ]
यदि केवल नाम ही व्यक्त करना हो तो उसमें प्रथमा विभक्ति होती है।
जैसे- गजः, देवः, कृष्णः,बालकः, रामः आदि ।
7. सूत्र - [ अव्यययोगे प्रथमा ]
अव्यय शब्दों के योग में प्रथमा विभक्ति होती है।
जैसे - रामः इति राजा आसीत् ।
8. सूत्र - [ प्रयोजक कर्त्तरि प्रथमा ]
प्रयोजक कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।
जैसे- शिक्षकः छात्रं पर्यावरणं दर्शयति।
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