सरदार पूर्णसिंह - जीवन परिचय, कृतियां और भाषा शैली |
सरदार पूर्णसिंह द्विवेदी युग के निबन्धकारों में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। पूर्णसिंह जी भावात्मक निबन्धों के रचनाकार के रूप में हिन्दी में अद्वितीय माने जा सकते हैं। उनकी भाषा में लाक्षणिकता का जैसा प्रयोग है, वैसा बहुत कम निबन्धकारों में दिखाई पड़ता है। पूर्णसिंह जी ने हिन्दी के अतिरिक्त पंजाबी एवं अंग्रेजी भाषा में भी लिखा है।
जब वह जापान में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तभी जापान में ही उनकी भेंट भारतीय सन्त स्वामी रामतीर्थ से हुई और उनसे प्रभावित होकर पूर्णसिंह जी ने संन्यास ले लिया तथा स्वामी जी के साथ भारत लौट आए। भारत वापस लौटने पर इनका विवाह श्रीमती मायादेवी से हुआ। परन्तु स्वामी जी की मृत्यु के उपरान्त इनके विचारों में पुनः परिवर्तन आया और इन्होंने संन्यास त्यागकर विवाह कर लिया। और गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे।
इसके बाद देहरादून के फारेस्ट कॉलेज में अध्यापक हो गए। यहीं से उनके नाम के साथ 'अध्यापक' शब्द जुड़ गया। यहां से त्याग-पत्र देने के बाद वे ग्वालियर महाराज की सेवा में चले गए किन्तु दरबारियों के षड्यन्त्र से महाराज से इनका मनमुटाव हो गया और ये नौकरी छोड़कर पंजाब के जडांवाला गांव में आकर खेती करने लगे। जीवन के अन्तिम दिनों में इन्हें आर्थिक अभाव झेलना पड़ा। अध्यापक पूर्णसिंह की मृत्यु सन् 1931 ई. में हुई।
इन्हीं हिंदी निबन्धों के बल पर इन्होंने हिन्दी गद्य साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। निबन्ध रचना के लिए इन्होंने प्रमुख रूप से नैतिक विषयों को चुना है। इनके निबन्ध मुख्यतः भावात्मक कोटि में आते हैं |
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सरदार पूर्णसिंह का 'जीवन-परिचय'
द्विवेदी युग के श्रेष्ठ निबंधकार सरदार पूर्ण सिंह का जन्म सीमा प्रांत जो अब पाकिस्तान में है के एबटाबाद जिले के सलहड़ नामक गाँव में 17 फ़रवरी सन् 1881 ई. में हुआ था | उनके पिता का नाम सरदार करतार सिंह भागर था उनके पिता कानूनगो पद पर आसीन एक सरकारी कर्मचारी थे | पूर्णसिंह जी ने मैट्रिक तक की शिक्षा रावलपिण्डी में पाने के बाद , वह इण्टर की परीक्षा के लिए लाहौर चले गये और इसके बाद रसायन शास्त्र की शिक्षा पाने के लिए 1900 ई. में एक विशेष छात्रवृत्ति पाकर जापान चले गए। वहां तीन वर्ष तक 'इम्पीरियल यूनीवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त की।जब वह जापान में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तभी जापान में ही उनकी भेंट भारतीय सन्त स्वामी रामतीर्थ से हुई और उनसे प्रभावित होकर पूर्णसिंह जी ने संन्यास ले लिया तथा स्वामी जी के साथ भारत लौट आए। भारत वापस लौटने पर इनका विवाह श्रीमती मायादेवी से हुआ। परन्तु स्वामी जी की मृत्यु के उपरान्त इनके विचारों में पुनः परिवर्तन आया और इन्होंने संन्यास त्यागकर विवाह कर लिया। और गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे।
इसके बाद देहरादून के फारेस्ट कॉलेज में अध्यापक हो गए। यहीं से उनके नाम के साथ 'अध्यापक' शब्द जुड़ गया। यहां से त्याग-पत्र देने के बाद वे ग्वालियर महाराज की सेवा में चले गए किन्तु दरबारियों के षड्यन्त्र से महाराज से इनका मनमुटाव हो गया और ये नौकरी छोड़कर पंजाब के जडांवाला गांव में आकर खेती करने लगे। जीवन के अन्तिम दिनों में इन्हें आर्थिक अभाव झेलना पड़ा। अध्यापक पूर्णसिंह की मृत्यु सन् 1931 ई. में हुई।
सरदार पूर्णसिंह की 'कृतियां'
सरदार पूर्णसिंह के हिन्दी में लिखे हुए छ: निबन्ध उपलब्ध है, इन्हीं निबन्धों के कारण सरदार पूर्णसिंह हिन्दी लेखकों में अमर हो गए।- सच्ची वीरता
- कन्यादान
- पवित्रता
- मजदूरी और प्रेम
- आचरण की सभ्यता
- अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट हिटमैन
इन्हीं हिंदी निबन्धों के बल पर इन्होंने हिन्दी गद्य साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। निबन्ध रचना के लिए इन्होंने प्रमुख रूप से नैतिक विषयों को चुना है। इनके निबन्ध मुख्यतः भावात्मक कोटि में आते हैं |
भाषाशैली:-
सरदार पूर्ण सिंह हिन्दी के चर्चित निबंधकार हैं। उन्हें हिन्दी के साथ संस्कृत, अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू आदि भाषाओं पर अच्छा अधिकार प्राप्त था। विविध भाषाओं के विद्वान होने के कारण इनके निबंधों में इन भाषाओं का प्रभाव अवश्य दिखाई देता है। कहीं-कहीं पर अंग्रेजी के वाक्य भी उभर आए हैं; जैसे "We shall beat the world with the tips of our fingers."
सरदार पूर्णसिंह ने भावात्मक निबन्ध लिखे हैं जिस कारण सरदार पूर्ण सिंह की भाषा भावानुकल सरल अथवा साहित्यिक है। उनके द्वारा संस्कृत के तत्सम और उर्दू के शब्दों का प्रयोग अधिकांशतः किया है | साथ ही उसमें मुहावरे और कहावतों का आकर्षक प्रयोग मिलता है। ‘आँखों का तारा‘, ‘आँखों में धूल झोकं ना, चिकनी चुपड़ी बातें मुहावरों के साथ ही , जिस डाल पर बैठे उसी को कुल्हाड़ी से काटना, ऊँची दुकान फीका पकवान आदि कहावतों के सुन्दर प्रयोग मिलते हैं।
इनसे भाषा में आकर्षक रूप आया है तो भावों में प्रभावोत्पादक रूप विकसित हुआ है। इस विवेचन से सुस्पष्ट होता है कि सरदार पूर्ण सिंह के निबंधों की भाषा स्वाभाविक, साहित्यिक और अनुकूल है।
हिन्दी साहित्य में स्थान:-
अध्यापक पूर्णसिंह ने केवल छ: निबन्ध लिखकर हिन्दी निबन्धकारों में महत्वपूर्ण अमर स्थान बना लिया। उनका जीवन अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय था तथा उनकी विचारधारा में गांधीवाद। साम्यवाद का अद्भुत तालमेल था। अपने निबन्धों के माध्यम से उन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण किया।Thank You
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