Pratyay in sanskrit - संस्कृत में प्रत्यय की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण |
नमस्कार दोस्तों 🙏 ,
1 - धातु में लगने वाले |
2 - शब्द में लगने वाले |
(b) तिड्. प्रत्यय - टिप्, टस्, झि आदि 18 प्रत्यय |
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प्रत्यय की परिभाषा
प्रत्यय की परिभाषा - जो वर्ण समूह किसी धातु शब्द के अन्त में जुड़कर नए अर्थ की प्रतीति कराते हैं उस वर्णसमूह को प्रत्यय कहते है| इन्हें हम दो वर्गों में बाँट सकते हैं |1 - धातु में लगने वाले |
2 - शब्द में लगने वाले |
pratyay in sanskrit |
1 - धातु में लगने वाले प्रत्यय:-
(a) कृत प्रत्यय - क्त्वा प्रत्यय, ल्पय प्रत्यय, तुमुन प्रत्यय, तव्यत् और अनीयर् प्रत्यय |(b) तिड्. प्रत्यय - टिप्, टस्, झि आदि 18 प्रत्यय |
(1. a) कृत या कृदंत प्रत्यय की परिभाषा :-
परिभाषा :- कृत प्रत्यय धातुओं में जोड़े जाते हैं इनसे बने पद को कृदंत कहते है | इनसे तीन प्रकार के शब्द निर्मित होते हैं|
(I) अव्यय , (II) विशेषण, (III) संज्ञा
कृत प्रत्यय के अंतर्गत आने वाले प्रत्यय -
(I) अव्यय , (II) विशेषण, (III) संज्ञा
कृत प्रत्यय के अंतर्गत आने वाले प्रत्यय -
(अ) क्त्वा प्रत्यय (ब) ल्पय प्रत्यय (स) तुमुन प्रत्यय (द) तव्यत् और अनीयर् प्रत्यय
जब एक ही कर्ता के द्वारा एक कार्य की समाप्ति के बाद दूसरी क्रिया की जाती है तो पहली क्रिया में क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है|
(अ) क्त्वा प्रत्यय परिभाषा :-
इस प्रत्यय से बने शब्द पूर्व कालिक क्रिया से जुड़े होते हैं |
जैसे - कृ + क्त्वा = कृत्वा(करके) ,
जैसे - कृ + क्त्वा = कृत्वा(करके) ,
दा + क्त्वा = दत्त्वा(देकर) इसी प्रकार पीत्वा(पीकर), गत्वा(जाकर) आदि|
उदहारण वाक्य -
(संस्कृत में) - छात्रः पठित्या गृह्म् गच्छति|
(हिन्दी में) - छात्र पढ़कर धर जाता है |
व्याख्या - इसमें पढ़ने वाली क्रिया पहले हुई है इसलिए पठ् धातु में क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग हुआ है|
(संस्कृत में) - छात्रः पठित्या गृह्म् गच्छति|
(हिन्दी में) - छात्र पढ़कर धर जाता है |
व्याख्या - इसमें पढ़ने वाली क्रिया पहले हुई है इसलिए पठ् धातु में क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग हुआ है|
(ब) ल्पय प्रत्यय परिभाषा :- जब धातु के पहले कोई उपसर्ग आये तो क्त्वा प्रत्यय के स्थान पर ल्पय आदेश हो जाता है| ल्पय प्रत्यय के योग से बनने वाले शब्द अव्यय हो जाते है|
जैसे - वि + नी + ल्पय = विनीय,
प्रा + नम् + ल्पय = प्रणम्य आदि |
(स) तुमुन प्रत्यय परिभाषा :- कर्ता जिस कार्य के निमित्य (अर्थात के लिए) कोई क्रिया करता है उस निमार्थक क्रिया को तुमुन प्रत्यय कहा जाता है |
जैसे - पठितुम, स्नातुम, पातुम, क्रीडितुम आदि|
(द) तव्यत् और अनीयर् परिभाषा :- तव्यत् और अनीयार् प्रत्ययों का प्रयोग 'चाहिए' या 'योग्यता' के अर्थ में होता है| इन प्रत्ययों का प्रयोग कर्मवाच्य और भाववाच्य में होता है कर्तृवाच्य में नहीं |
जैसे:-
अनीयार् प्रत्यय के उदाहरण - कथ् + अनीयर् = कथनीय, भू + अनीयर् = भवनीयम् आदि|
तव्यत्त् प्रत्यय के उदाहरण - कृ + तव्यत् = कर्तव्यम्, गम् + तव्यत् = गन्तव्यम् आदि|
(b) स्त्री प्रत्यय
(c) सुप् प्रत्यय
अनीयार् प्रत्यय के उदाहरण - कथ् + अनीयर् = कथनीय, भू + अनीयर् = भवनीयम् आदि|
तव्यत्त् प्रत्यय के उदाहरण - कृ + तव्यत् = कर्तव्यम्, गम् + तव्यत् = गन्तव्यम् आदि|
2 - शब्दों में लगने वाले प्रत्यय :-
(a) तद्धित प्रत्यय(b) स्त्री प्रत्यय
(c) सुप् प्रत्यय
(2.a) तद्धित प्रत्यय की परिभाषा -
परिभाषा :- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण एवं अव्यय पदों से जोड़ें जाने वाले प्रत्यय तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं और पद्धित प्रत्यय से बने हुए शब्द तद्धितांत कहलाते हैं|
तद्धित प्रत्यय के अंतर्गत आने वाले प्रत्यय :-
(अ) मतुप प्रत्यय (ब) इनि प्रत्यय (स) तल या त्व प्रत्यय (द) ठक् प्रत्यय
(अ) मतुप प्रत्यय परिभाषा :- मतुप प्रत्यय का 'मत' शेष बचता है | मतुप प्रत्यांत शब्द 'विशेषण' होते हैं इसलिए विशेष्य के आधार पर लिंग, वचन और विभक्ति निर्धारित होती है |
जैसे - श्री + मतुप = श्रीमान , श्रीमती, श्रीमत |
गुण + मतुप = गुणवान , गुणवती , गुणवत |
आयुष + मतुप = आयुष्मान , आयुष्मती, आयुष्मत आदि |
गुण + मतुप = गुणवान , गुणवती , गुणवत |
आयुष + मतुप = आयुष्मान , आयुष्मती, आयुष्मत आदि |
(ब) इनि प्रत्यय परिभाषा :- अकारांत शब्दों में इनि प्रत्यय का प्रयोग होता है जिसमें 'इन' शेष बचता है अथवा 'ई' में बदल जाता है |
जैसे - दुःख + इनि = दुखि:न या दुखी |
दान + इनि = दानिन और दानी |
चक्र + इनि = चक्रिन या चक्री |
दान + इनि = दानिन और दानी |
चक्र + इनि = चक्रिन या चक्री |
(स) तल या त्व प्रत्यय परिभाषा :- किसी शब्द को भाव वाचक संज्ञा बनाने के लिए त्व अथवा तल प्रत्यय का प्रयोग क्रिया जाता है | त्व से समाप्त होने वाले शब्द हमेशा नपुन्सकलिंग होते हैं |तल से समाप्त होने वाले शब्द हमेशा स्त्रीलिंग होते हैं|
जैसे - गुरु = गुरुत्व , गुरुता |
सुन्दर = सुंदरत्व, सुन्दरता |
सुन्दर = सुंदरत्व, सुन्दरता |
(ह) ठक् प्रत्यय परिभाषा :- ठक् प्रत्यय का प्रयोग भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए किया जाता है |ठक् का 'इक' शेष बचता है |
जैसे - अ का आ => धर्म का धार्मिक |
इ/ई का ऐ => इतिहास का ऐतिहासिक |
उ/ऊ का औ => उद्योग का औद्योगिक |
इ/ई का ऐ => इतिहास का ऐतिहासिक |
उ/ऊ का औ => उद्योग का औद्योगिक |
(2.b) स्त्री प्रत्यय की परिभाषा-
परिभाषा :- पुर्लिंग शब्दों को स्त्रीलिंग बनाने के लिए प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं |
स्त्री प्रत्यय के अंतर्गत आने वाले प्रत्यय :-
(अ) टाप प्रत्यय, (ब) डीप प्रत्यय, (स) डीष् प्रत्यय, (द) डीन प्रत्यय आदि |
(अ) टाप प्रत्यय परिभाषा :- इसमे 'अजादिगण' में गिने गये शब्दों को और अकारांत पुर्लिंग शब्दों को स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'टाप्' प्रत्यय लगाया जाता है|
अतः टाप् का 'आ' शेष रह जाता है और टाप् प्रत्यय से बने शब्दों के रूप 'रमा' की भांति चलते हैं|
जैसे - अज + टाप् = अजा,
चटक + टाप् = चटका,
सुत + टाप् = सुता,
शुद्र + टाप् = शूद्रा
जैसे - अज + टाप् = अजा,
चटक + टाप् = चटका,
सुत + टाप् = सुता,
शुद्र + टाप् = शूद्रा
(ब) डीप प्रत्यय परिभाषा :- डीप प्रत्यांत पद स्त्रीलिंग कहलाते हैं इनके रूप भी नदी की तरह ही चलते है | डीप प्रत्यय का 'ई' शेष बचता है |
जैसे- नद् + डीप = नदी
देव् + डीप = देवी
कुमार् + डीप = कुमारी
पंचवट + डीप = पंचवटी
देव् + डीप = देवी
कुमार् + डीप = कुमारी
पंचवट + डीप = पंचवटी
(स) डीष् प्रत्यय परिभाषा :- जिन प्रत्ययों में 'ष' का लोप हुआ हो इसे प्रत्यय से बने हुए शब्दों से तथा गौराधिगण से बने शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'डीष् प्रत्यय' का प्रयोग किया जाता हैं |
इस प्रत्यय को जोड़ते समय 'ई' शेष बचता हैं और इनसे बने शब्दों को 'ईकारांत' स्त्रीलिंग कहते हैं | इसे शब्दों के रूप 'नदी' की भांति चलते है|
जैसे - नृतक + डीष् = नृतकी , गौर + डीष् = गौरी |
जैसे - नृतक + डीष् = नृतकी , गौर + डीष् = गौरी |
(द) डीन् प्रत्यय परिभाषा :- इस प्रत्यय में भी 'ई' शेष बचती है | इससे भी 'ईकारन्त' स्त्रीलिंग बनते है और इनके रूप भी नदी की तरह चलते हैं|
जैसे = ब्राह्मण + डीन = ब्राह्मणी, नृ + डीन = नारी |
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