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वर्तमान भारतीय समाज और प्रारम्भिक शिक्षा || महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न || Part - 1 ||

वर्तमान भारतीय समाज और प्रारम्भिक शिक्षा

वर्तमान भारतीय समाज और प्रारम्भिक शिक्षा

||  लघु उत्तरीय प्रश्न  ||

प्रश्न 1- शिक्षा की संकल्पना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- शिक्षा मानव विकास का मूल साधन है । इसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कला कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है ।
'शिक्षा' शब्द का सीधा-सादा व सामान्य अर्थ 'सीखने-सिखाने' की प्रक्रिया से जुड़ा है। इस सीखने-सिखाने का लक्ष्य है-- बच्चे का विकास। यह भी माना गया है कि बच्चे के भी तर ही अनेक शक्तियाँ विद्यमान हैं । शिक्षा अपनी विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से बच्चे में अन्तर्निहित इन शक्तियों का विकास करती है।

प्रश्न 2- प्राचीन समय में शिक्षा का अर्थ बताइए।
उत्तर- प्राचीन काल में शिक्षा से तात्पर्य आत्म-ज्ञान तथा आत्म-प्रकाशन माना जाता था। प्राचीन काल में यूनान में राजनीतिक, शारीरिक, मानसिक, नैतिक तथा सौन्दर्य शिक्षा प्रदान की जाती थी।

प्रश्न 3. शिक्षा का संकुचित अर्थ बताइए।
उत्तर- संकुचित अर्थ से आशय उस शिक्षा से है जो एक निश्चित स्थान अथवा विद्यालय या कॉलेज में निश्चित योजना तथा निश्चित समय तक दी जाती है।

प्रश्न 4. शिक्षा का व्यापक अर्थ लिखिए।
उत्तर– व्यापक अर्थ के अनुसार शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया उसी समय प्रारम्भ हो जाती है जब बालक का जन्म होता है।

प्रश्न 5. स्वामी विवेकानन्द के अनुसार शिक्षा का महत्व बताइए।
उत्तर- जो विचार जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र में सहायक हों, उन्हें ही शिक्षा को संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 6. मानव जीवन में शिक्षा का महत्व क्यों आवश्यक है ?
उत्तर- शिक्षा का महत्व व्यक्तिगत विकास के लिए, समाज की प्रगति के लिए,राष्ट्र की प्रगति के लिए, मानव कल्याण के लिए, सभ्यता तथा संस्कृति के लिए आवश्यक है।'

प्रश्न 7. शिक्षा वैयक्तिता का पूर्ण विकास करना है, किसने कहा ?
उत्तर- टी. पी. नन का कहना है कि शिक्षा वैयक्तिकता का पूर्ण विकास है। जिससे कि व्यक्ति अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार मानव-जीवन को योगदान दे सकें।

प्रश्न 8.. शिक्षा का वास्तविक अर्थ बताइए।
उत्तर– वास्तविक अर्थ में शिक्षा की आवश्यक से अधिक उदार बन जाती है। इस अर्थ के अनुसार बालक को अनियन्त्रित वातावरण में रखते हुए उसके स्वाभाविक विकास पर बल दिया जाता है।

प्रश्न 9. शिक्षा का महत्व लिखिए।। .
उत्तर- शिक्षा मानव की शक्ति का, विशेषतया मानसिक शक्ति का सामान्य विकास करती है जिससे वह परम सत्यं, शिवं तथा सुन्दरम् का चिन्तन करने योग्य बन सके ।'' इस प्रकार शिक्षा बालक के व्यक्तित्व के विकास में सहायता करती है ।- शिक्षा के आधार पर ही बालक पर्यावरण से सामंजस्य स्थापित करने में सफल होता है।
अत: मानव जीवन में शिक्षा का विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 10- शिक्षा की प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– शिक्षा के तीन अंग हैं—प्रथम शिक्षक, द्वितीय छात्र और तृतीय समाज । इन तीनों में समानता पायी जाती है । इससे स्पष्ट है कि कोई भी सचेतन पदार्थ जड़ नहीं हो सकता । इसी कारण शिक्षा को जड़ वस्तु नहीं समझा
जाता है । शिक्षा में गतिशीलता पायी जाती है। अत: शिक्षा को गत्यात्मक प्रक्रिया कहा जाता है।

प्रश्न 11. शिक्षा जन्मजात शक्तियों को व्यक्त करने की प्रक्रिया है, किसने कहा ?
उत्तर- पेस्तालॉजी के अनुसार शिक्षा, मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक सामंजस्यपूर्ण तथा प्रगतिशील विकास है।

प्रश्न 12. शिक्षा पर्यावरण के साथ समायोजन करना है, किसने कहा ?
उत्तर- शिक्षा का कार्य मानव का पर्यावरण से उस सीमा तक समायोजन करना है जिससे व्यक्ति व समाज दोनों की स्थायी संतोष मिल सके–बाँसिंग।

प्रश्न 13. अच्छे चरित्र का निर्माण करना ही शिक्षा है।'' स्पष्ट करो ?
उत्तर– व्यक्ति का चारित्रिक एवं नैतिक विकास करना शिक्षा का मुख्य उत्तरदायित्व है। हरबर्ट ने लिखा है, ''अच्छे चरित्र का निर्माण करना ही शिक्षा है।''

प्रश्न 14. शिक्षा बहुअर्थीय है, इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर– शिक्षा शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया जाता है। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री अरस्तू ने भी कहा है-“शिक्षा मनुष्य को पाशविक प्रवृत्तियों से ऊँच उठाने का कार्य करती है।
शिक्षा के कई अर्थ हैं-
1. शिक्षा का व्युत्पत्तिक अर्थ
2. शिक्षा का संकुचित अर्थ,
3. शिक्षा का विश्लेषणात्मक अर्थ,
4. शिक्षा के वास्तविक अर्थ।।

प्रश्न 15. शिक्षा द्विमुखी प्रक्रिया है। किसने कहा ? |
उत्तर- एडम्स ने शिक्षा को द्विमुखी प्रक्रिया माना है। रॉस ने कहा है-चुम्बक के समान शिक्षा में भी दो ध्रुवों का होना आवश्यक है। इसलिए शिक्षा द्विमुखी प्रक्रिया है |

प्रश्न 16. शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया है। किसने कहा?
उत्तर- जॉन ड्यूवी ने लिखा है- 'शिक्षा में अध्यापक, विद्यार्थी के साथ-साथ पाठ्यक्रम भी सम्मिलित किया जाता है। इसलिए शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया है।

प्रश्न 17. वर्तमान भारतीय शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर– वर्तमान भारतीय शिक्षा के उद्देश्य इस प्रकार हैं-व्यक्तित्व का सम्यक् विकास, लोकतान्त्रिक नागरिकता के गुणों का विकास, चरित्र का निर्माण, व्यावसायिक कुशलता का विकास, राष्ट्रीय एकीकरण एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का विकास, भविष्य के अनिश्चित समाज के लिए तैयारी।

प्रश्न 18. लोकतान्त्रिक नागरिकता के गुण बताइए।
उत्तर— ये गुण हैं–लोकतान्त्रिक मूल्यों में आस्था, नेतृत्व, ईमानदारी, कर्तव्य भावना, अनुशासन, सहयोग, सहनशीलता, राष्ट्रप्रेम आदि गुणों का विकास संविधान में वर्णित कर्तव्यों के अधिकारों की समझ आदि।

प्रश्न 19. औपचारिक शिक्षा से क्या आशय है ?
उत्तर— इसमें शिक्षा देने की योजना अर्थात् समय, स्थान, अध्यापक, विधि एवं पाठ्यक्रम पूर्व निर्धारित होता है।

प्रश्न 20. अनौपचारिक शिक्षा से क्या आशय है ?
उत्तर– इसे एक जीवन-पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया के रूप में देखते हैं । शिक्षा इसमें बहुत अधिक व्यापक तथा विस्तृत प्रत्यय है।

प्रश्न 21. दूरस्थ शिक्षा का अर्थ बताइए।
उत्तर- दूरस्थ शिक्षा का अर्थ है-दूर रहकर शिक्षा को प्राप्त करना । इसके अन्तर्गत शिक्षा प्रदान करने वाले और शिक्षा प्राप्त करने वाले के मध्य दूरी होती है।

प्रश्न 22. संघ में प्रविष्ट होने को क्या कहते हैं ?
उत्तर– संघ बौद्ध शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे। संघ में प्रविष्ट होने को ‘प्रबज्जा' कहते थे। इसका अर्थ है - बाहर जाना

प्रश्न 23. बौद्धकाल में गुरु शिष्य सम्बन्ध कैसे थे ?
उत्तर- गुरु एवं शिष्यों के मध्य बड़े घनिष्ट एवं मधुर सम्बन्ध हुआ करते थे। दोनों का जीवन सादा तथा निकट का होता था। गुरु शिष्यों को शैक्षिक, शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक आवश्यकताओं के अनुसार उनका विकास करता था।

प्रश्न 24. मकतब का अर्थ बताइए।
उत्तर- मकतब का अर्थ है लिखना इस अर्थ में मकतब का वह स्थान है जहाँ बालक लिखना सीखता है। मस्जिदों के साथ संलग्न मकतबों में अक्षर-ज्ञान के साथ-ही-साथ धार्मिक शिक्षा भी चलती थी।

प्रश्न 25. मदरसा का अर्थ बताइए।
उत्तर- 'मदरसा' शब्द फारसी के दरस शब्द से निर्मित है। इसका अर्थ है- व्याख्यान देना। मदरसा वह स्थान है जहाँ भाषण दिए जाते थे। जहाँ उच्च स्तरीय शिक्षा प्रदान की जाती थी।


प्रश्न 26. मैकाले ने अपना विवरण कब प्रस्तुत किया।
उत्तर– लार्ड मैकाले ने अपना परामर्श 2 फरवरी, 1835 को लार्ड विलियम बैंटिक के पास भेजा था। इसी परामर्श को मैकाले का विवरण पत्र कहा जाता है।

प्रश्न 27. मैकाले ने अंग्रेजी साहित्य के विषय में क्या कहा ?
उत्तर- मैकाले ने अंग्रेजी साहित्य की महिमा का गुणगान किया और कहा कि एक अच्छे अंग्रेजी के पुस्तकालय की एक अलमारी के बराबर ही समस्त संस्कृत एवं अरबी का साहित्य है।''

प्रश्न 28. क्या मैकाले भारतीय शिक्षा का अग्रदूत था ?
उत्तर– वास्तव में मैकाले भारतीय शिक्षा का अग्रदूत नहीं था। जो लोग मैकाले को शिक्षा का अग्रदूत कहते हैं वे गलती करते हैं। वह तो भारत में अंग्रेजी साहित्य, धर्म तथा संस्कृति का प्रचार करना चाहता था।

प्रश्न 29, वुड के घोषणा-पत्र के आधार पर कम्पनी ने शिक्षा नीति कब घोषित की ?
उत्तर– वुड के घोषणा-पत्र के आधार पर कम्पनी ने 19 जुलाई, 1854 में अपनी शिक्षा नीति घोषित की।

प्रश्न 30. राधाकृष्णन् आयोग की नियुक्ति कब हुई ?
उत्तर- राधाकृष्णन् आयोग की नियुक्ति 4 नवम्बर, 1948 को की गयी थी।

प्रश्न 31. माध्यमिक शिक्षा आयोग के अध्यक्ष कौन थे ? तथा इसकी नियुक्ति कब हुई ?
उत्तर-  माध्यमिक शिक्षा आयोग के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर थे। इसी कारण इस आयोग को मुदालियर आयोग कहते हैं। इसकी नियुक्ति 23 सितम्बर,1952 को हुई थी।

प्रश्न 32. आदर्शवाद की परिभाषा को कितने भागों में विभाजित किया गया ?
उत्तर– आदर्शवाद की परिभाषाओं को चार भागों में विभाजित किया जाता है-
1. आत्मनिष्ठ आदर्शवादी,
2. वस्तुनिष्ठ आदर्शवादी,
3. निरपेक्ष आदर्शवादी,
4. पश्चात्मक,आदर्शवादी।

प्रश्न 33. आदर्शवाद से सम्बन्धित शिक्षा का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर– आदर्शवाद से विशेष रूप से सम्बन्धित शिक्षा का उद्देश्य है व्यक्तित्व का उत्कर्ष अथवा आत्मानुभूति--आत्मा की सर्वोच्च क्षमताओं का वास्तविक रूप प्रदान करना।

प्रश्न 34. आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा का दूसरा प्रमुख उद्देश्य क्या है ?
उत्तर– आदर्शवाद का दूसरा प्रमुख उद्देश्य है–सांस्कृतिक धाती (Ileritage) में वृद्धि करना। आदर्शवाद–मनुष्य की सांस्कृतिक धाती को विशेष महत्व देता है।

प्रश्न 35. आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा का तीसरा प्रमुख उद्देश्य लिखिए।
उत्तर- आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा का तीसरा प्रमुख उद्देश्य आध्यात्मिक आदर्शों की प्राप्ति है। रस्क के अनुसार ये तीन आदर्श हैं—बौद्धिक, भावात्मक, सांकल्पिक।

प्रश्न 36, आदर्शवाद के अनुसार मानव जीवन का अन्तिम उद्देश्य क्या है ?
उत्तर– आदर्शवादी विचारधारा के अनुसार मानव जीवन का अन्तिम उद्देश्य आत्मानुभूति होता है। परन्तु इसकी प्राप्ति में मनुष्य की इन्द्रियाँ बाधक होती हैं। इन्द्रियाँ सांसारिक सुख-भोग करना चाहती हैं। अतः आवश्यक है कि मनुष्य की इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखा जाए।

प्रश्न 37, आदर्शवाद के अनुसार अनुशासन क्या है ?
उत्तर– आदर्शवाद बालक को पूर्णरूप से स्वतन्त्रता देने के पक्ष में नहीं है। वे बालक को अनुशासन में रखना चाहते हैं उनके अनुसार, बालक के आध्यात्मिक विकास के लिए उसे अनुशासन में रखना आवश्यक है।

प्रश्न 38. फ्रॉबेल के अनुसार अनुशासन में दण्ड का क्या स्थान है ?
उत्तर– फ्रॉबेल अनुशासन में दण्ड का कोई स्थान नहीं देता। अपितु वह कहता है कि सहानुभूति से काम लेकर बालक की आत्मक्रिया और आत्मनियन्त्रण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उसी के शब्दों में ''बालक पर नियन्त्रण करते समय उसकी रुचियों का ध्यान रखा जाना चाहिए एवं प्रेम तथा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए।"

प्रश्न 39. आदर्शवाद के अनुसार विद्यालय का महत्व बताइए।
उत्तर– आदर्शवादी बालक के लिए सामाजिक पर्यावरण आवश्यक मानते हैं। वह सामाजिक पर्यावरण विद्यालय में ही मिल सकता है।

प्रश्न 40. प्रकृतिवाद का अर्थ लिखिए।
उत्तर– प्रकृतिवादी दर्शन की वह विचारधारा है जो प्रकृति को मूल तत्व मानती है। इस दर्शन के अनुसार यह भौतिक जगत ही सत्य है। इसके अतिरिक्त और किसी शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं हैं।

प्रश्न 41. प्रकृति की ओर लौटो से क्या आशय है ?
उत्तर– प्रकृतिवादी दर्शन के अनुसार, "प्रकृति के पथ का अनुकरण करना चाहिए।'' इस दर्शन के अनुसार प्रत्येक वस्तु प्रकृति से उत्पन्न होती है।

प्रश्न 42. प्रकृति की ओर लौटो के सम्बन्ध में रूसो का क्या कथन है ?
उत्तर– रूसो का कथन है कि प्रत्येक वस्तु नियन्ता के यहाँ से अच्छे रूप में आती है। केवल मनुष्य के सम्पर्क में वह दूषित हो जाती हैं।

प्रश्न 43. प्रकृतिवाद के अनुसार शिक्षा की प्रक्रिया में बालक का क्या स्थान है ?
उत्तर-इस विचारधारा के अनुसार बालक शिक्षा के लिए नहीं है, वरन् शिक्षा बालक के लिए है। बालक न तो शिक्षा पर आश्रित होता है और न पाठ्य पुस्तक पर।

प्रश्न 44. प्रकृतिवाद के अनुसार पुस्तकीय ज्ञान आवश्यक है अथवा नहीं।
उत्तर–प्रकृतिवादी बालक के पुस्तकीय ज्ञान के विरोधी हैं। रूसो के विचार में पुस्तकीय ज्ञान कृत्रिम अथवा अपूर्ण होता है। बालकों को शिक्षा शब्दों में न देकर कागजों में दी जानी चाहिए।

प्रश्न 45. प्रकृतिवादी के अनुसार बालक को शिक्षा कैसे दी जानी चाहिए ?
उत्तर– रूसो का कथन है कि प्रकृति कहती है कि वयस्क व्यक्ति के बनने से पहले बालक को बालक ही रहना चाहिए। यदि वह व्यवस्था भंग की जाती है तो यह बिना पके अग्रिम फलों की उत्पत्ति करेंगे। जो शीघ्र ही नष्ट हो जायेंगे। हमें तुरन्त युवक सेवक एवं वृद्ध बालक मिलेंगे।

प्रश्न 46. प्रकृतिवाद के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए।
उत्तर– प्रकृतिवादी अनुशासन स्थापित करने के लिए किसी बाहरी शक्ति पर बल नहीं देते। इसी कारण वह स्वयंअनुशासन पर बल देते हैं।

प्रश्न 47, प्रकृतिवादी दर्शन के अनुसार अनुशासन सह-शिक्षा उचित है या नहीं।
उत्तर– प्रकृतिवादी दर्शन के अनुसार बालक और बालिकाओं को पृथक रूप से शिक्षा देना अनुचित है। इस प्रकार प्रकृतिवादियों ने सह-शिक्षा के महत्व को स्वीकार किया है। उनके बालक तथा बालिकाओं को एक साथ पढ़ाया जाना चाहिए।

प्रश्न 48. प्रकृतिवाद के अनुसार विद्यालय की आवश्यकता बताइए।
उत्तर- रूसो ने यह स्वीकार किया है कि बालक के विकास के लिए किसी विद्यालय की आवश्यकता नहीं है। बल्कि उसे प्रकृति की गोद में स्वतन्त्र छोड़ दिया जाए। जिससे वह व्यतिगत रुचियों, क्षमताओं, योग्यताओं का विकास स्वतन्त्र रूप से कर सके।

प्रश्न 49. प्रकृतिवाद को शांति निकेतन पर प्रभाव बताइए।
उत्तर- यहाँ कक्षाएँ भवन में नहीं ली जाती, शिक्षण कार्य पेड़ के नीचे खुले मैदान में होती हैं प्राकृतिक पर्यावरण में, आश्रम ढंग से, बालकों की रुचि के अनुसार सह-शिक्षा दी जाती है तथा भ्रमण के द्वारा शिक्षा को महत्व दिया जाता है।

प्रश्न 50. रूसो की नकारात्क शिक्षा का स्वरूप बताइए।
उत्तर - रूसो की नकारात्मक शिक्षा का स्वरूप इस प्रकार है-
1. पुस्तकीय ज्ञान का विरोध,
2. निर्देशन न हो, स्वानुभव,
3. शब्दों का माध्यम नहीं, क्रिया का माध्यम,
4. नियन्त्रण न हो, रूढ़िगत बन्धनों से मुक्ति,
5. समय-सारिणी न हो,
6. बालक पर भार न डालें, उसे सुखपूर्वक कार्य करने दीजिए, 7. नैतिक शिक्षा का विरोधी,
8. आदतों के निर्माण का विरोध,
9. समाज से दूर, प्रचलित परम्पराओं का विरोधी।


प्रश्न 51. जेम्स के अनुसार प्रयोजनवाद की परिभाषा लिखिए।
उत्तर– जेप्स के अनुसार प्रयोजनवाद मस्तिष्क का स्वभाव तथा मनोवृत्ति है। यह विचारों की प्रकृति एवं सत्य का भी सिद्धान्त है और अपने अन्तिम रूप में यह वास्तविकता का सिद्धान्त है।

प्रश्न 52. प्रैट के अनुसार प्रयोजनवाद की परिभाषा बताइए।
उत्तर– प्रैट के अनुसार प्रयोजनवाद हमें अर्थ का सिद्धान्त, सत्य का सिद्धान्त, ज्ञान का सिद्धान्त और वास्तविकता का सिद्धान्त देता है।

प्रश्न 53, शिक्षा के उद्देश्यों के सम्बन्ध में जॉन ड्यूवी ने क्या लिखा है ?
उत्तर - शिक्षा के उद्देश्यों के विषय में जॉन डयुवी ने लिखा है ''शिक्षा के उद्देश्य नहीं होते, उद्देश्य केवल व्यक्ति के होते हैं और व्यक्तियों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते हैं, जैसे-जैसे बालकों में परिवर्तन होता है, उसी के साथ उद्देश्य भी बदल जाते हैं।''

प्रश्न 54. प्रयोजनवाद के अनुसार नवीन मूल्यों का निर्धारण कैसे होता है ?
उत्तर– प्रयोजनवाद के सामान्य उद्देश्य नवीन मूल्यों की रचना करना है जिसका प्रमुख कर्तव्य विद्यार्थी को ऐसे वातावरण में रखना है जिसमें रहकर नवीन मूल्यों का निर्माण कर सकें।

प्रश्न 55, मूल्य दर्शन प्रयोजनवाद में किन तथ्यों का विश्लेषण किया गया ?
उत्तर– मूल्य दर्शन में निम्नलिखित तथ्यों का विश्लेषण किया है-
1. नैतिक मूल्य क्या है,
2. सुन्दर क्या है, 3. ईश्वर क्या है,
4, गतिशील एवं लचीले मस्तिष्क का विकास,
5. गतिशील निर्देशन, 6. सामाजिक कुशलता,
7. छात्र का विकास, 8. व्यावसायिक निर्देशन,
9, नागरिक दक्षता।

प्रश्न 56. प्रयोजनवाद के अनुसार बालक को शिक्षा किस प्रकार दी जानी चाहिए?
उत्तर– वर्तमान समय में बालक को शिक्षा उसकी रुचियों के अनुसार दी जाती है। प्रयोजनवादी पाठ्यक्रम का स्वरूप बालक की रुचियों के ध्यान में रखकर निर्धारित करने के पक्ष में है।
प्रश्न 57. प्रयोजनवाद में शिक्षक का क्या स्थान है ?
उत्तर– प्रयोजनवादी शिक्षक को शिक्षा संगठन में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करते हैं। इसी कारण आज शिक्षक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 58. प्रयोजनवादी बालकों को किस प्रकार की शिक्षा देना चाहते हैं ?
उत्तर— प्रयोजनवादी शिक्षा के माध्यम से जनतन्त्रीय मूल्यों का विकास बालक में करना चाहते हैं। बालक के अनुभव के आधार पर शिक्षा देना चाहते हैं। बालक की शिक्षा में व्यक्तिगत रुचियों तथा योग्यताओं को महत्व देते हैं।

प्रश्न 59, प्रयोजनवाद, आदर्शवाद में प्रकृतिवाद का मध्यवृत्ति मार्ग है इसके दो तर्क दीजिए।
उत्तर– कहा जाता है कि प्रयोजनवाद, आदर्शवाद और प्रकृतिवाद का मध्य मार्ग है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं।

(1) प्रकृतिवाद मनुष्य को यन्त्रवत् मानता है। इसी कारण यह यन्त्रवाद पर बल देता है आदर्शवाद व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास पर बल देता है। प्रयोजनवाद इन दोनों के मध्य का मार्ग अपनाता है। यह व्यक्ति के भौतिक
विकास पर बल देता है। प्रयोगवाद भौतिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
(2) प्रकृतिवाद व्यक्ति के शरीर को 'सत्य' मानता है। इसी कारण यह दर्शन मनुष्य को जीव के रूप में देखता है।
आदर्शवाद आत्मा को सत्य मानता है। इसी कारण यह दर्शन मनुष्य को आध्यात्मिक प्राणी मानता है। प्रयोजनवाद इन दोनों में से किसी को भी सत्य नहीं मानता। यह अनुभव को सत्य मानता है। अनुभव की प्राप्ति मनुष्य के मस्तिष्क से होती है। मस्तिष्क अपना कार्य सामाजिक परिस्थितियों में करता है। प्रयोजनवाद इस प्रकार मनुष्य के शरीर तथा मस्तिष्क दोनों को महत्व देता है।

प्रश्न 60. कौन-सा दर्शन परम्पराओं व मान्यताओं का विरोधी है ?
उत्तर– प्रयोजनवादी दर्शन परम्पराओं व मान्यताओं का विरोधी है।

प्रश्न 61. प्रयोजनवाद किसे स्वीकार नहीं करता ?
उत्तर– प्रयोजनवाद किसी निश्चित अथवा शाश्वत सत्य आदि सिद्धान्त की सत्ता को स्वीकार नहीं करता है।

प्रश्न 62. स्वामी विवेकानन्द के अनुसार शिक्षा का क्या अर्थ है ?
उत्तर- स्वामीजी ने शिक्षा का अर्थ अपने शब्दों में इस प्रकार बताया है-
           "शिक्षा मनुष्य की अन्तनिहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।''

प्रश्न 63. स्वामीजी के अनुसार शिक्षा कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर– स्वामीजी का कथन है, शिक्षा उस जानकारी के समुदाय का नाम नहीं जो तुम्हारे मस्तिष्क में भर दिया जाता है और यहाँ पड़े-पडे सारी जिन्दगी भर बिना पचाए सड़ रहा है। हमें तो भावों या विचारों को ऐसे आत्मसात कर लेना चाहिए जिससे जीवन निर्माण हो, मनुष्यत्व आवे और चरित्र गठन हों। यदि शिक्षा और जानकारी एक
ही वस्तु होती है तो पुस्तकालय संचार के सबसे बड़े संत और विश्वकोष ही ऋषि बन जाते।

प्रश्न 64. स्वामी विवेकानन्द के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर– स्वामीजी ने शिक्षा का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा है, ''सभी शिक्षाओं का, अभ्यास का उद्देश्य मनुष्य निर्माण ही है। समस्त अभ्यासों का अन्तिम ध्येय मनुष्य का विकास करना है।

प्रश्न 65, स्वामी विवेकानन्द के शारीरिक विकास के सम्बन्ध में क्या विचार है ?
उत्तर– स्वामीजी शारीरिक व्यायाम की आवश्यकता पर अत्यधिक बल देते थे। एक बार उन्होंने अपने शिष्य से कहा था-"तुम्हें शरीर को अत्यधिक शक्तिशाली बनाने की विधि जाननी चाहिए।'' इस प्रकार उनके अनुसार शिक्षा का प्रथम उद्देश्य शारीरिक विकास करना है।

प्रश्न 66. पाठ्यक्रम के सम्बन्ध में स्वामीजी के क्या विचार है ?
उत्तर— विवेकानन्द ने कहा है-''यह अधिक उचित होगा, यदि लोगों को थोड़ी तकनीकी शिक्षा मिल जाए जिससे वे नौकरी की खोज में इधर-उधर भटकने के स्थान पर किसी कार्य में लग सकें और जीविकोपार्जन कर सकें।''

प्रश्न 67. टैगोर के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य कौन-कौन से हैं ?
उत्तर- टैगोर के अनुसार शिक्षा के विभिन्न उद्देश्य इस प्रकार हैं-
1. शारीरिक विकास, 2, बौद्धिक विकास,
3. नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास,
4, अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण का विकास,
5. वातावरण और शिक्षा।

प्रश्न 68. टैगोर के अनुसार श्रेष्ठ शिक्षा की क्या विशेषता है ?
उत्तर- श्रेष्ठ शिक्षा की विशेषता यह है कि वह व्यक्ति को अपना दास न बनाकर स्वतंत्र बनाती है।

प्रश्न 69. टैगोर के अनुसार शिक्षा का माध्यम क्या होना चाहिए ?
उत्तर– टैगोर ने शिक्षा का माध्यम मातृभाषा बताया है। शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होनी चाहिए। सजीव मातृभाषा के माध्यम से ही दी हुई शिक्षा चिरस्थायी बन सकती है। यदि ऐसा न किया जाए तो वह शिक्षा समाज के उच्च स्तरों के लिए सामाजिक शोभा का कारण बन सकती है, परन्तु ऐसी शिक्षा सनातन जीवन की धारा नहीं बन सकती।

प्रश्न 70, बालकों की शिक्षा में टैगोर प्रकृति को कितना महत्व देते थे ?
उत्तर- सासरिक बन्धनों में पड़ने से प्रथम बालकों को अपने निर्माण काल में प्रकृति का प्रशिक्षण प्राप्त करने दिया जाना चाहिए। बैंचों, श्यामपटों, पुस्तकों तथा परीक्षाओं की तुलना में वृक्ष और पौधे, आकाश का स्वच्छ विस्तार, शुद्ध और स्वच्छन्द वायु, तालाब का स्वच्छ और ठण्डा पानी तथा प्रकृति का विस्तृत क्षेत्र कम आवश्य
नहीं है।

प्रश्न 71. गाँधीजी के अनुसार जीविकोपार्जन का उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर– गाँधी चाहते थे कि बालक अपनी शिक्षा समाप्त करके इस योग्य हो जाए कि वह अपनी जीविका स्वयं कमा सके। गाँधीजी कहते हैं कि 'यदि शिक्षा व्यक्ति जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करती तो ऐसी शिक्षा व्यर्थ है।

प्रश्न 72, गाँधीजी के अनुसार सच्ची शिक्षा कौन-सी है ?
उत्तर- इस सम्बन्ध में गाँधीजी ने हरिजन में इस प्रकार लिखा था-"सच्चे शिक्षा वह है जिसके द्वारा बालकों के शारीरिक विकास, मानसिक तथा आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहन मिले।''

प्रश्न 73. गाँधीजी के चरित्र के विकास के सम्बन्ध में क्या विचार थे ?
उत्तर- गाँधीजी के शब्दों में मैंने सदैव हुदय की सांस्कृतिक निर्माण को प्रथम स्थान दिया है और चरित्र निर्माण को शिक्षा का उचित आधार माना है। गाँधीजी ऐसे शिक्षा को व्यर्थ मानते थे जो बालकों का चरित्र निर्माण न कर सके।

प्रश्न 74. डॉ. राधाकृष्णन् के प्रमुख विचार कौन-से हैं ?
उत्तर- डॉ. राधाकृष्णन् के प्रमुख विचार----
(1) धर्म का लक्ष्य अन्तिम सत्य का अनुभव है,
(2) दर्शन का उद्देश्य जीवन की व्याख्या करना नहीं जीवन को बदलना है।

प्रश्न 75, गिजू भाई के अनुसार बालक क्या है ?
उत्तर– बालक के भीतर शक्ति का अथाह भण्डार होता है। उसकी निरन्तर अनेक गुणों को उत्पन्न करती है। बालक में आज्ञापालन, अनुशासन, परिश्रम एवं ईमानदारी आदि सदाचारी गुण होते हैं।

प्रश्न 76. प्लेटो के अनुसार शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर- प्लेटो ने शिक्षा का उद्ददेश बालक के मान और शरीर का विकास करना बताया है | प्लेटो प्रश्न करता हैं , "क्या मैं यह कहने में सही हूं की अच्छी शिक्षा वह है तो शरीर तथा मान का सर्वाधिक विकास कराती हैं |

प्रश्न 77. प्लेटो के अनुसार शिक्षा के अन्य उद्देश्य बताइए?
उत्तर - 1. सहयोगी तथा सामुदायिक जीवन की भावना का विकास|
2. नागरिक कुशलता का विकास |
3. शारीरिक तथा मानसिक विकास |
4. विवेक का विकास |
5. संतुलित व्यक्तित्व का निर्माण |

प्रश्न 78. रूसो की पुस्तक एमील क्यों प्रसिद्ध हैं?
उत्तर- एमील की रूसो को शिक्षा - सुधारक तथा स्वतंत्र विचारक को श्रेणी में ला खड़ा किया | वह शिक्षा के द्वारा समाज की कुरीतियों को दूर करना चाहता था | उसने अपनी पुस्तक एमील में तत्कालीन समाज की अनेक कुरीतियों की ओर संकेत किया है |

प्रश्न 79. रूसो का प्रकृतिवाद क्या है ?
उत्तर– रूसो प्रकृतिवादी था । उसने प्राकृतिक शिक्षा को ही स्वाभाविक शिक्षा माना है। इसी कारण वह बालक की शिक्षा में कृत्रिम वातावरण का विरोधी है । उसके अनुसार बालक की शिक्षा के लिए प्राकृतिक वातावरण की आवश्यकता है । उसने कहा–''प्रकृति की ओर लौटो'' तथा 'प्रकृति का अनुसरण करो ।''

प्रश्न 80. रूसो के अनुसार शिक्षा के मूल स्रोत कौन-से हैं ?
उत्तर- रूसो के अनुसार शिक्षा के तीन मूल स्रोत हैं—(1) प्रकृति, (2) मानव (3) पदार्थ । रूसो के अनुसार बालक की शिक्षा में तीनों का समन्वय आवश्यक है।

प्रश्न 81. रूसो के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य बताइए।
उत्तर– रूसो यह नहीं मानता कि शिक्षा का उद्देश्य शिक्षा के लिए बालकों की बलि चढ़ा देना है । रूसो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालक की स्वाभाविक शक्तियों का विकास करके उसका आन्तरिक विकास करना है।

प्रश्न 82. रूसो का प्राकृतिक वातावरण से क्या आशय है ?
उत्तर- रूसो पुस्तकीय ज्ञान का विरोधी है । यह बालक की शिक्षा उसको प्राकृतिक वातावरण में रखकर देना चाहता है। रूसो कहता है, “पुस्तक हमें केवल उन बातों के बारे में बताती है जिनके विषय में हम नहीं जानते हैं।'' रूसो क्रिया के माध्यम से बालकों को शिक्षा देना चाहता है । सो कहता है, “पढ़ना बाल्यावस्था का अभिशाप है और बच्चों के दु:ख का मुख्य कारण है।''


प्रश्न 83. विद्यालय और समुदाय का सम्बन्ध अटूट कैसे है ?
उत्तर- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । शिक्षा उसे समुदाय का कुशल सदस्य बनाती है । सतत् शिक्षा के द्वारा व्यक्ति अपना अधिकतम विकास करता हुआ समाज की सामाजिक, आर्थिक या नैतिक आवश्यकताओं को समझता है और उनकी पूर्ति के प्रयास करता है । इस प्रक्रिया के द्वारा समुदाय का निरन्तर विकास होता रहता है, उसके आदर्शों की रक्षा होती है तथा नवीन मूल्यों का विकास भी होता है । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए समुदाय ने विद्यालयों की स्थापना की थी।

प्रश्न 84. जॉन ड्यूवी के अनुसार विद्यालय की आवश्यकता बताइए।
उत्तर– जॉन ड्यूवी विद्यालय को एक सामाजिक संस्था के रूप में स्वीकार करते हुए यह कहा कि जिस प्रकार शरीर को कायम रखने हेतु भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार समाज के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है । इसके लिए शिक्षा के महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में विद्यालय की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 85. विद्यालय एक सामाजिक संस्था है। कैसे ?
उत्तर– विद्यालय एक सामाजिक संस्था है । शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है और इस नाते विद्यालय सामान्यतः सामुदायिक जीवन का यह स्वरूप है।

प्रश्न 86. अलगाववाद क्या है ?
उत्तर- अलगाववाद की समस्या राष्ट्रीय एकता तथा समानता में बाधा पहुँचा रही है । भारत में विभिन्न संस्कृतियाँ देखने को मिलती हैं और इन संस्कृतियों में परस्पर अलगाववादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जो देश की एकता पर सदैव प्रतिघात करती है । प्रान्तीयता की भावना भी अलगाववाद को जन्म देती है।

प्रश्न 87. जातिवाद से क्या हानियाँ हैं ?
उत्तर- भारत में जातियाँ एवं उपजातियाँ इतनी हैं कि उनकी गिनती पर पाना असम्भव है । इन जातियों में परस्पर ऊँच-नीच तथा छोटे-बड़े की भावना भी होती है। जिसके कारण यह एक-दूसरे से मिलना-जुलना या व्यवहार का आदान-प्रदान करना उचित नहीं समझते हैं और यही भावना उपद्रव को जन्म देती है।

प्रश्न 88. भारत में धर्म-निरपेक्षता का क्या रूप है ?
उत्तर-- भारत में धर्म-निरपेक्षता कोरा नारा बनकर रह गयी है। धर्म के नाम पर अनेक झगड़े होते हैं। राजनीतिक चुनावों में धर्म तथा साम्प्रदायिकता का बोलबाला रहता है। सरकार द्वारा अल्पमत के नाम पर तुष्टीकरण की नीति को प्रश्रय दिया जाता है।

प्रश्न 89. शिक्षा द्वारा सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सौहार्द किस प्रकार सम्भव है ?
उत्तर- शिक्षा सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सौहार्द्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है । यह विभिन्न संस्कृतियों में सम्मान तत्त्वों की खोज और विभिन्नताओ की व्याख्या करते हुए बालको को एकता का पाठ पढ़ा सकती है राष्ट्रीय स्वाभिमान, राष्ट्रीय सेवा, राष्ट्रप्रेम, राष्ट्र की एकता और अखंडता आदि को बालकों में शिक्षा की सहायता से सफलता पूर्वक विकसित किया जा सकता है तथा सामाजिक एवं सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाया जा सकता हैं |

प्रश्न 90. ड्यूवी के अनुसार शिक्षा विकास की प्रक्रिया है। कैसे ?
उत्तर- ड्यूवी शिक्षा को विकास की प्रक्रिया मानता है । मानव जीवन की विशेषता विकास है और विकास का सम्बन्ध शिक्षा से है । मनुष्य की आन्तरिक शक्तियों का सदैव विकास होता रहता है । इस प्रकार शिक्षक का कार्य बालक के विकास में सहायता पहुँचाना है।

प्रश्न 91. जनसंचार माध्यमों के शिक्षा में तीन प्रमुख लाभ बताइए।
उत्तर– जनसंचार माध्यमों के प्रमुख लाभ--
(1) राष्ट्रीय एकीकरण समझ काविकास करना ।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय समझ का विकास करना ।
(3) सामाजिक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रवृत्ति का विकास करना ।

प्रश्न 92. दूरदर्शन के दो प्रमुख शैक्षिक लाभ लिखिए।
उत्तर— (1) दूरदर्शन पर जो भी कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं वे विशेषज्ञों द्वारा तैयार किये जाते हैं इसीलिए ये कार्यक्रम छात्रों को विषय की विस्तृत जानकारी प्रदान करने में सहायता करते हैं ।
(2) दूरदर्शन की सहायता से एक ही समय में अधिक-से-अधिक छात्रों को शिक्षा प्रदान की जा सकती है।

प्रश्न 93. मैकाइवर के अनुसार समाज क्या है ?
उत्तर- मैकाइवर ने समाज को सामाजिक सम्बन्धों का जाल बताया है।'

प्रश्न 94. फिचर के अनुसार परिवर्तन का क्या अर्थ है ?
उत्तर– फिचर ने परिवर्तन का अर्थ इस प्रकार बताया है “परिवर्तन को संक्षेप में पहले की अवस्था अथवा अस्तित्व के प्रकार के अन्तर के रूप में परिभाषित किया जाता है।"

प्रश्न 95. भारत ने सामाजिक परिवर्तन लाने वाली शक्तियाँ कौन-कौन सी
उत्तर-  भारत में निम्नलिखित शक्तियों द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाया जा रहा है-
1. आविष्कार, 2. राजनीतिक परिवर्तन, 3. इतिहास, 4. सामाजिक कुरीतियाँ,
5. आर्थिक परिस्थितियाँ, 6. ग्राम पंचायत, 7. धार्मिक तत्व, 8. शिक्षा।

प्रश्न 96. शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार होता है ?
उत्तर– सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान करती है। सामाजिक परिवर्तन पहले भौतिक सांस्कृतिक परिवर्तन के रूप में होता है। फिर उसका रूप अभौतिक सांस्कृतिक परिवर्तन का हो जाता है। शिक्षा का कार्य यह भी है कि वह वर्तमान में उन परिवर्तनों को लाने का प्रयास करे जो समाज में नवजीवन का संचार कर दे और इस प्रकार समाज प्रगति की ओर बढ़ने लगे।

प्रश्न 97. समाज द्वारा सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया बताइए।
उत्तर- समाज सदैव सक्रिय रहता है और इसी कारण उसमें सदैव परिवर्तन आता रहता है। कुछ व्यक्ति सामाजिक परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं। सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन है।

प्रश्न 98. राधाकमल मुकर्जी ने मूल्य की परिभाषा क्या दी है ?
उत्तर– समाज समस्त ऐसी इच्छाओं या अभिलाषायें मूल्य कही जाती हैं जो कि अनुबन्धन की प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति में अन्तर्निहित हो जाती हैं । जो कि समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा भी उस व्यक्ति की प्राथमिकताओं, रुचियों, महत्वकांक्षाओं के रूप में प्रकट करता है।

प्रश्न 99. व्यक्ति एवं देश के सुखद भविष्य के लिए मूल्य शिक्षा की आवश्यकता बताइए।
उत्तर– आज का मनुष्य भौतिक सुख-सुविधाओं पर स्वयं को केन्द्रित कर रहा है और इन्हें प्राप्त करने के लिए वह किसी भी स्तर पर जा सकता है। धार्मिक संघर्ष, दहेज समस्या, नारी उत्पीडन, अस्पृश्यता, मादक दवाओं और व पदार्थों का सेवन, कर-चोरी. कालाबाजारी, राजनैतिक भ्रष्टाचार आदि वह विशेषताएँ उभर रही हैं जिन्होंने हमारे
सुखद भविष्य की कल्पना पर प्रश्न चिह्न लगा दिया है । इस कारण यदि हम एक सुखद व समृद्ध भारतवर्ष की कल्पना करना चाहते हैं तो हमें छात्रों में उचित मूल्यों का विकास करना होगा और इसके लिए मूल्य शिक्षा की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 100. अनैतिकता की पहचान के लिए मूल्य शिक्षा किस प्रकार सहायक हो सकती है ?
उत्तर– बालक को यह ज्ञात हो कि क्या अच्छा है या बुरा, क्या उचित है व क्या अनुचित है। अच्छे-बुरे, अनुचित, उचित का ज्ञान मूल्य शिक्षा द्वारा ही सम्भव है । इस कारण यह शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए जिससे व्यक्ति नैतिक व अनैतिक के मध्य अन्तर कर सके।

प्रश्न 101. यंग एवं मेक के अनुसार मूल्यों के विकास में परिवार की भूमिका बताइए।
उत्तर– परिवार मानवीय समूहों में सबसे पुराना तथा सबका आधार है । इस स्वरूप भिन्न-भिन्न समाजों में भिन्न रूप में दृष्टिगोचर होता है परन्तु सभी का कार्य बालक का पालन-पोषण तथा सामाजिक संस्कृति का ज्ञान प्रदान करना है। संक्षेप में बालक का समाजीकरण करना ।

प्रश्न 102. टी रेमॉण्ट के अनुसार परिवार का महत्व बताइए।
उत्तर– दो बालकों को एक समान स्कूल में शिक्षा देने के पश्चात् भी उनके सामान्य ज्ञान, रुचियों एवं अभिव्यक्तियों के तरीकों में अन्तर पाया जाता है। इसका मूल कारण दोनों बालकों के अलग-अलग परिवार होते हैं।

प्रश्न 103. समाज मूल्य शिक्षा में किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर- यदि हम यह कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि समाज के सदस्यों के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्धों का प्रभाव मानव के मूल्यों पर पड़ता है। यदि समाज में सुसम्बन्ध है तो व्यक्ति के अंदर प्रेम, सहानुभूति, त्याग, शान्ति, सद्भाव, भ्रातृत्व, सामाजिक एकता आदि मूल्यों का विकास होगा और यदि सम्बन्धों में कटुता है तो ईष्य
द्वेष, वैमनस्य आदि मूल्यों की प्रबलता देखने को मिलेगी।

प्रश्न 104. मूल्यों के विकास में विद्यालय की भूमिका बताइए।
उत्तर– बालक इसी विद्यालय में उपस्थित होकर अपने भविष्य के समाज के स्वरूप, सौन्दर्य तथा गुणों के दर्शन करता है, साथ ही उस विद्यालय के वातावरण में उपस्थित अवसरों तथा वातावरण के अन्य कारकों के आधार पर भावी समाज के उन मूल्यों, गुणों, आदर्शो, मान्यताओं आदि को स्वीकारोक्ति प्रदान कर हृदयस्थ कर लेता
है । अत: संक्षेप में, आज के समस्त जटिल समाज में वृहद् मूल्यों के स्वांगीकरण का सन्तुलित केन्द्र यदि विद्यालय का माना जाए तो वह अतिश्योक्ति नहीं होगी।

वर्तमान भारतीय समाज और प्रारम्भिक शिक्षा
|अति लघु उत्तरीय प्रश्न|Part -2|

|बहुविकल्पीय प्रश्न|Part -3|

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